मुझे तो कुछ नहीं आता, हाँ!उनकी याद आती है
संजोया कुछ नहीं अपना, बस बीते पलों की थाती है
मील के पत्थर को पहुंचकर देखा
राह मुड़ गयी है अब उनसे दूर जाती है
वापस जाना नहीं मुमकिन वो इज़ाज़त नहीं देते
भूल पाना नहीं आसाँ साँस टूट जाती है
हाथ की रेखाओं से हीं हारे हम भी आखिर में
आस्था मिट गयी अपनी (पर) वहम अब भी बाकी हैं