कुछ नहीं आता

मुझे तो कुछ नहीं आता, हाँ!उनकी याद आती है
संजोया कुछ नहीं अपना, बस बीते पलों की थाती है

मील के पत्थर को पहुंचकर देखा
राह मुड़ गयी है अब उनसे दूर जाती है

वापस जाना नहीं मुमकिन वो इज़ाज़त नहीं देते
भूल पाना नहीं आसाँ साँस टूट जाती है

हाथ की रेखाओं से हीं हारे हम भी आखिर में
आस्था मिट गयी अपनी (पर) वहम अब भी बाकी हैं

चलो ना हम दोनों हीं अब छोड़ भी दें ये कोशिशें

चलो ना हम दोनों हीं
अब छोड़ (भी) दें ये कोशिशें
मैं–भूल जाने की
तुम–याद आने की

तुम्हें मिले कोई नया हमसफ़र
मैं भी ढूंढूं कोई वजह नई
दिन बिताने की
रात के जाने की

और जो ना ढूंढ पाऊँ तो
फिर हार जाऊँ तो
इतनी बुरी भी क्या होगी
ज़िन्दगी बेवजह सी बेमानी सी

जावेद अख्तर की ‘लावा’ पढने के बाद…

आज एक बड़े शायर का दीवान पढ़ा
आज फिर तुम्हें बहुत याद किया

(तुम्हें खबर तो होगी)
मैं हर शै में ढूँढता हूँ तुम्हें ही
इन शेरों-नगमों में भी मैंने तुम्हें हीं तलाश किया

यूँ तो हर अशआर में बात थी कोई
पर मुझे वोही शेर जँचे जिनका तुझसे कोई राब्ता सा था

(पता है!)
कुछ शेर तुम्हारी तरह हीं होते हैं
होठों पे बस ही जाते हैं जो एक बार भी होठों से छुआ

ग़ज़ल सीख भी लें अंदाज़ सब तुम्हारी तरह
पर मुझे आगोश में नहीं भर लेते, मैं उन्हें चूम नहीं सकता

अब किस तरह इश्क मेरा जाँविदा होगा
“मैं तो मर कर भी मेरी जान तुझे चाहूंगा” गाने वाला मेंहदी हसन भी गुजर गया