बागों में पड़े झूले 

इस मौसम का एक गीत|

बागों में पड़े झूले

तुम भूल गए हमको
हम तुमको नहीं भूले
ये रक्स सितारों का
सुन लो कभी अफसाना
तक़दीर के मारों का
सावन का महीना है
साजन से जुदा रहकर
जीना भी क्या जीना है
रावी का किनारा हो
हर मौज के होठों पर
अफसाना हमारा हो
दिल में हैं तमन्नाएँ
डर है कि कहीं हम-तुम
बदनाम न हो जाएँ
अब और न तड़पाओ
या हमको बुला भेजो
या आप चले आओ |

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